बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य
अध्याय - 5
भक्तिकाल
प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
अथवा
भक्ति आन्दोलन के पृष्ठभूमि एवं विकास पर संक्षिप्त निबंध लिखिए।
उत्तर -
भक्ति के उद्भव एवं विकास पर हिन्दी साहित्य में दो प्रकार की विचारधाराएं पायी जाती हैं। कुछ विद्वानों का विचार है कि भक्ति के उद्भव का कारण राजनैतिक परिस्थितियाँ थीं जबकि कुछ विद्वान इसे एक अविच्छिन्न सांस्कृतिक धार्मिक और सामाजिक भावना का परिणाम मानते हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, "अपने पौरुष से हताश जाति के लिए भगवान की शक्ति और कारण की ओर ध्यान ले जाने के अतिरिक्त दूसरा मार्ग ही क्या था।' बाबू गुलाबराय कहते हैं मनोवैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार, "हार की मनोवृत्ति में दो बातें सम्भव है- या तो अपनी आध्यात्मिक श्रेष्ठता दिखाने या भोग-विलास में पड़कर हार को भूल जाना। भक्तिकाल के लोगों में प्रथम प्रकार की प्रवृत्ति पायी गयी।'
भक्ति ईसाई धर्म की देन नहीं बेवर, कीथ, ग्रियर्सन और विल्सन जैसे पाश्चात्य विद्वानों आदि ने भक्ति को ईसाई धर्म की देन बताया है। ग्रियर्सन के अनुसार ईसा की दूसरी, तीसरी शताब्दी में कुछ ईसाई मद्रास में आकर बस गये जिनके प्रभाव से भक्ति का विकास हुआ, प्रो. विल्सन ने भक्ति को अर्वाचीन युग की वस्तु सिद्ध करते हुए कहा है कि विभिन्न आचार्यों ने अपनी प्रतिष्ठा के लिए इसका प्रचार किया। एक अन्य पाश्चात्य विद्वान ने तो कृष्ण को क्राइस्ट का रूपांतरण ही कह दिया। डॉ. ताराचंद, हुमायू, कबीर और डॉ. आबिद हुसैन का कहना है कि समस्त भक्ति साहित्य आन्दोलन मुस्लिम संस्कृति के संपर्क की देन है और शंकराचार्य, निम्बार्क, रामानुज, रामानंद, बल्लभाचार्य, आलवर संत और वीर शैव एवं लिंगायत आदि शैव संप्रदायों की दार्शनिक मान्यताओं पर मुस्लिम प्रभाव है। लेकिन यह बता देना जरूरी है कि शंकरन के अद्वैतवाद और मुसलमानों के एकेश्वरवाद में पर्याप्त अंतर है और अन्य धार्मिक आचार्यों की दार्शनिक मान्यताएं भी मुस्लिम सम्पर्क की प्रतिक्रिया से उद्भूत नहीं है। बालगंगाधर तिलक, कृष्ण गोस्वामी, आयंगर और डॉ. एचराय चौधरी ने पाश्चात्य विद्वान की इस तरह की मान्यताओं का युक्तिपूर्ण खंडन किया है।
भक्ति पराजित मनोवृत्ति का परिणाम नहीं आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी हिन्दी साहित्य में भक्ति के उदय की कहानी को न तो पराजित मनोवृत्ति का परिणाम मानते हैं और न इसे मुस्लिम राज्य की प्रतिष्ठा की प्रक्रिया। उनके शब्दों में 'यह बात अत्यन्त उपहासास्पद है कि जब मुसलमान लोग उत्तर भारत के मंदिर तोड़ रहे थे तो उसी समय दक्षिण में भक्त लोगों ने भगवान शरणागति की प्रार्थना की। मुसलमानों के अत्याचारों से यदि भक्ति की भावधारा को उमड़ना था तो पहले उसे सिंध में और फिर उसे उत्तर भारत में प्रकट होना चाहिए था, पर हुई दक्षिण में सभी मुस्लिम शासक अत्याचारी नहीं थे। उनमें कुछ उदारवादी भी थे। उन्होंने संस्कृति, साहित्य और कला को पर्याप्त प्रोत्साहन भी दिया, अतः इस बात को माना नहीं जा सकता कि इस्लाम के प्रचार के प्रतिक्रियास्वरूप भक्ति का उदय हुआ, राजपूत राजा तो अंतिम समय तक स्वाधीनता के लिए जूझते रहे, प्राणों की बाजी लगाते रहे, तब उनमें निराशा का संचार कैसे माना जा सकता है। शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, विष्णुस्वामी, निम्बार्क, रामानंद, चैतन्य और बल्लभाचार्य प्रायः सभी आचार्य मुस्लिम युग में ही हुए पर वे हमेशा देश की राजनैतिक परिस्थितियों से निर्लिप्त ही रहे। कबीर, सूर, तुलसी, नंददास, जायसी आदि कवियों के विषय में भी यही कहा जा सकता है। इनमें निराशा लेशमात्र नहीं है।
वस्तुतः भक्तिकाल जहाँ उच्चतम धर्म की व्याख्या करता है, वहाँ उसमें उच्चकोटि का काव्य भी प्रवाहित है। रस की दृष्टि से भी यह काव्य श्रेष्ठ है। यह लोक तथा परलोक को भी स्पर्श करता है। यह आडंबरहीन साहित्य है और सरस जीवन की झांकी भी इसमें प्रवाहित हो रही है। यह ठीक है कि भक्ति आन्दोलन में जातिगत कठोरता व धार्मिक संकीर्णता कहीं-कहीं दिखती है, पर धीरे-धीरे इसमें जाति-पाति का बंधन समाप्त हो गया था। अतः आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ठीक ही लिखा है। परिणाम यह हुआ कि किनारे पर पड़ी बहुत सारी जातियाँ छंट गयी थी और बहुत दिनों तक न हिन्दू न मुसलमान बनी रहीं।
जब मुस्लिम प्रभाव के कारण धर्म परिवर्तन का जोर चला, तब कबीर जैसे संत हुए जिन्होने जाति-पांति का जमकर विरोध किया। भक्ति आंदोलन पर ईसाई प्रभाव के बारे में द्विवेदी जी का यह कथन देना असंगत न होगा। इस प्रकार के अवतार का जो रूप है, इस पर महायान संप्रदाय भक्तिभाव है, वह महायानियों की देन सिद्ध होने को चला है क्योंकि ऐसे बौद्धों का अस्तित्व एशिया की पश्चिमी सीमा में सिद्ध हो चुका है और कुछ पंडित इस प्रकार के प्रमाण पाने का दावा करने लगे हैं कि स्वयं ईसा मसीह भारत के उत्तरी प्रदेशों में आये, बौद्ध धर्म में दीक्षित भी हुए थे।
डॉ. रामरत्न भटनागर का कहना है कि मध्य युग का भक्ति आन्दोलन पौराणिक धर्म के पुनरोत्थान का युग है। उनके शब्दों में - मध्य युग के भक्ति आंदोलन को हम पौराणिक धर्म के पुनरुत्थान का युग कह सकते हैं। वस्तुतः गुप्तों के युग में विष्णु और लक्ष्मी को लेकर जिन धार्मिक भावनाओं का विकास हुआ था, वे ही इस युग में राधा-कृष्ण और सीता-राम के माध्यम से विकसित हुई।
भक्ति का मूल द्राविड़ी में - डॉ. सत्येन्द्र भक्ति का उद्भव द्रविड़ों से मानते हैं दक्षिण के वैष्णव से नहीं मानते। वे लिखते हैं- भक्ति द्रविड़ों, ऊपजी, लाये रामानंद, द्रविड़ों से अर्थ सत्येन्द्र का दक्षिण देश से ही था। लेकिन आज अनुसंधानकर्ताओं ने सिद्ध कर दिया है कि भक्ति का मूल द्राविड़ी में है, दक्षिण के द्रविड़ों में नहीं। आज यह भी सिद्ध हो चुका है कि मोहनजोदड़ों और हड़प्पा के द्रविड़ एकेश्वरवादी थे। उनके इस ईश्वर का नाम शिव था। आर्यों ने भक्ति का भाव दक्षिण से प्राप्त किया था।
भक्ति की सुदीर्घ परंपरा - भारतीय धर्म साधना के क्षेत्र मे भक्ति की परम्परा सुदीर्घकाल से चली आ रही है। इसका प्रतिपादन महाभारत के शान्ति पर्व तथा भीष्म पर्व में नारायणोपाख्यान का वर्णन है। वस्तुतः पौराणिक धर्म पूर्ववर्ती भागवत धर्म का एक ही ऐसा नव-परिवर्तित रूप है जिसमें एक ओर भक्ति भावना के प्रमुख स्थान दिया गया, दूसरी ओर उनमें ऐसे तत्वों आका समावेश हुआ जिससे वह जैन और बौद्ध धर्म की प्रतिस्पर्द्धा में टिक सकें, नारद भक्तिसूत्र में भी भक्ति के स्वरूप का सांगोपांग विवेचन है। शांडिल्य भक्ति सूत्र इससे भी पूर्व का है।
आलवार भक्तों को भक्ति आन्दोलन का श्रेय - आठवीं नवीं शताब्दी में दक्षिण भारत में पौराणिक धर्म का प्रचार हो चुका था। भले ही कुमारिल और शंकर के अकाट्य तर्कों ने सगुण स्वरूप भक्ति के विकास में कुछ व्यवधान खड़ा किया हो किन्तु दक्षिण भारत के वैष्णवों ने भक्ति के संरक्षण का पूरा-पूरा प्रयत्न किया। दक्षिण भारत में आलवार भक्त हुए जिन्होंने शंकर के अद्वैतवाद की परवाह न करते हुए भक्तिधारा को प्रवाहमान रखा। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भक्ति आन्दोलन का श्रेय दक्षिण के उन आलवार भक्तों को दिया है। उनकी संख्या बारह मानी जाती है। जिनमें बहुत से ऐतिहासिक सिद्ध हो चुके हैं। इनमें आचाल नाम की एक भक्तिन भी थी, वह भी मीरा के समान कृष्ण को पति मानती थी और कृष्ण मे विलीन हो गयी थी। इन भक्तों का समय ईसा की प्रथम शताब्दी से लेकर आठवीं शताब्दी में आचार्य नाथ मुनि हुए जिन्होंने वैष्णवों का संगठन, आलवारों के भक्तिपूर्ण गीतों की दार्शनिक व्याख्या आदि महत्वपूर्ण कार्य किये। इनसे भक्ति परम्परा को नया बल मिला। इनके उत्तराधिकारियों में रामानुजाचार्य हुए। उन्होंने विशिष्ट द्वैतवाद की स्थापना की। रामानुजाचार्य ने दास्य भाव का प्रचार किया। इसी परंपरा में रामानन्द हुए। इसी संप्रदाय में गोस्वामी तुलसीदास हुए, जिन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के शील, सौन्दर्य एवं शक्ति का समन्वय रूप प्रस्तुत किया। इसी भक्ति शाखा में कृष्ण भक्ति की सी रसिकता का समावेश हुआ। दूसरी ओर द्वैतवाद के प्रवर्तक माध्वाचार्य, द्वैताद्वैतवाद के संस्थापक- निंबार्काचार्य और मुग्धा द्वैतवाद के प्रतिष्ठापक बल्लभाचार्य हुए, माध्वाचार्य ने शंकर के मायावाद का खण्डन किया और विष्णु भक्ति का प्रचार किया। निंबार्क ने लक्ष्मी एवं विष्णु के स्थान पर राधा-कृष्ण का प्रचार किया। बल्लभाचार्य ने कृष्ण की उपासना पर बल दिया और पुष्टि मार्ग का प्रवर्तन किया। चैतन्य महाप्रभु ने चैतन्य संप्रदाय स्वामी हरिदास के साख़ी संप्रदाय और हित हरिवंश के राधा बल्लभ सम्प्रदाय और शुद्धाद्वैत के प्रतिष्ठापक बल्लभाचार्य हुए। माध्यवाचार्य ने राधा बलभ सम्प्रदाय के द्वारा कृष्णभक्ति में माधुर्यभाव का प्रचार किया। सूर इसी परम्परा के कवि हैं।
मुसलमानों में छुआछूत नहीं था। तत्कालीन बौद्धों और सिद्धों तथा नाथयोगियों में भी इसी प्रकार का बंधन नहीं था। इन योगियों ने ईश्वर को मन में बसाया। कर्मकाण्ड को आडंबर बताकर यौगिक क्रियाओं पर विशेष बल दिया। महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत नामदेव ने हिन्दू-मुसलमानों के लिए सामान्य भक्तिमार्ग की स्थापना की। कबीर, दादू, नानक आदि ने भक्ति के इसी रूप को विकसित किया।
भक्ति प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा का अविच्छिन्न धारा - निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भक्ति की यह धारा तो दक्षिण में अबाध रूप से बह रही थी किन्तु उत्तर भारत मे भी इसका प्रचार पहले से ही था। अतः भक्ति की पौध विदेश से नहीं लायी गयी न ही मुस्लिम समुदाय ने इसका सिंचन किया न ही यह निराशा के कारण उत्पन्न हुई थी और न किसी प्रतिक्रिया का प्रतिफलन है। यह तो प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा का अविच्छिन्न वेगधारा है और इस धारा प्रस्फुटन आकस्मिक नहीं है।
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- प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
- प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
- प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
- प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
- प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
- अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
- प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
- अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
- अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
- प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
- प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
- प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
- प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
- अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
- प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
- प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
- अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
- अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
- अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
- अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
- अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।